मैं होशे-अनादिल हूँ मुश्किल है सँभल जाना / फ़िराक़ गोरखपुरी
मैं होशे-अनादिल<ref>बुलबुल के स्वभाव का</ref>हूँ मुश्किल है सँभल जाना
ऐ बादे-सबा<ref>सवेरे की हवा</ref> मेरी करवट तो बदल जाना
तक़दीरे-महब्बत हूँ मुश्किल है बदल जाना
सौ बार सँभल कर भी मालूम सँभल जाना
उस आँख की मस्ती हूँ ऐ बादाकशो<ref>शराब पीने वालों </ref> जिसका
उठ कर सरे-मैख़ाना मुमकिन है बदल जाना
अय्यामे-बहारां<ref>बहार के दिनों</ref> में दीवानों के तेवर भी
जिस सम्त<ref>ओर,तरफ़</ref> नज़र उट्ठी आलम का बदल जाना
घनघोर घटाओं में सरशार<ref>मस्त</ref> फ़ज़ाओं में
मख्म़ूर<ref>नशे में चूर,नशे में धुत</ref> हवाओं में मुश्किल है सँभल जाना
हूँ लग़्जिशे मस्ताना<ref>मस्ताने की लड़खड़ाहट</ref> मैख़ान-ए-आलम में
बर्के़-निगहे-साक़ी<ref>साक़ी की निगाह की बिजली</ref> कुछ बच के निकल जाना
इस गुलशने-हस्ती में कम खिलते हैं गुल ऐसे
दुनिया महक उट्ठेगी तुम दिल को मसल जाना
मैं साज़े-हक़ीक़त हूँ सोया हुआ नग़्मा था
था राज़े-निहां<ref>छुपा हुआ राज़</ref> कोई परदों से निकल जाना
हूँ नकहते-मस्ताना<ref>मस्ती-भरी महक</ref> गुलज़ारे महब्बत में
मदहोशी-ए-आलम है पहलू का बदल जाना
मस्ती में लगावट से उस आंख का ये कहना
मैख़्वार की नीयत हूँ मुमकिन है बदल जाना
जो तर्ज़े-गज़लगोई मोमिन ने तरह की थी
सद-हैफ़<ref>सौ दुख</ref> फ़िराक़ उसका सद-हैफ़ बदल जाना