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ज़ीस्त की जुस्तजू है ग़ज़ल / साग़र पालमपुरी
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17:12, 1 सितम्बर 2009
साये की आरज़ू है ग़ज़ल
नज़्र<ref>भेंट</ref>‘साग़र’करे और क्याआपके रू-ब-रू<ref>समक्ष</ref> है ग़ज़ल
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द्विजेन्द्र द्विज
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