भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
है अभी महताब बाक़ी और बाक़ी है शराब
और बाक़ी मेरे तेरे दरम्याँ सदहा१ सदहा<ref>सैकड़ों</ref> हिसाब।
दीद अन्दर दीद, हैरानम हेजाब अन्दर हेजाब
वाय बावस्फ़े ईं क़दर-राजो-नयाज़ ईं इजतेनाब।
दिल में यूँ बेदार२ बेदार<ref>जाग्रत</ref> होते हैं ख़यालाते-ग़ज़ल
आँख मलते जिस तरह उट्ठे कोई मस्ते-शबाब।
आतशे-रुख़सार में कल्बे-तपाँ का इल्तहाब।
चूड़ियाँ बजती हैं दिल में, मरहबा३मरहबा<ref>धन्य हो</ref>, बज़्मे-ख़यालखिलते जाते हैं निगाहों में जबीनों४ जबीनों<ref>माथा</ref> के गुलाब।
काश पढ़ सकता किसी सूरत से तू आयाते-इश्क़
एक आलम पर नहीं रहती है कैफ़ीयाते इश्क़
गाह रेगिस्ताँ भी दरिया, गाह दरिया भी सुराब५।सुराब<ref>मृगतृष्णा</ref>।
कौन रख सकता है इसको साकिनो-जामिद कि ज़ीस्त
इनक़लाबो - इनक़लाबो - इनक़लाबो - इनक़लाब ।
ढूँढिये क्यों इस्तेआरे६ इस्तेआरे<ref>रूपक</ref> और तशबीहो७ तशबीहो<ref>उपमा</ref> - मिसाल
हुस्न तो वो है बतायें जिसको हुस्ने - लाजवाब ।
हस्त जन्नत की बहारें चन्द पंखडि़यों में बन्द
गुन्चा खिलता है तो फ़िरदौसों८ फ़िरदौसों<ref>स्वर्ग</ref> के खुल जाते हैं बाब९।बाब<ref>द्वार</ref>।
आ रहा है नाज़ से सिम्ते - चमन को ख़ुशख़िराम१०ख़ुशख़िराम<ref>अच्छी चाल वाला</ref>दोश११ दोश<ref>कंधा</ref> पर वो गेसू-ए-शबगूँ१२ शबगूँ<ref>रात की तरह केश वाला</ref> के मँडलाते सहाब१३।सहाब<ref>बादल</ref>।
हुस्न ख़ुद अपना नक़ीब, आँखों को देता है पयाम
रह गयी सौ बार झुक-झुक कर निगाहे कामयाब।
हर नज़र जलवा है हर जलवा नज़र हैरान हूँ
आज किस बैतुलहरम१६ बैतुलहरम<ref>अल्लाह का घर मस्जिद</ref> में हो गया हूँ बारयाब१७।बारयाब<ref>प्रवेश प्राप्त</ref>।
बारहा, हाँ बारहा मैने दमे-फ़िक्रे-सुखन१८सुखन<ref>काव्य चिन्तन के समय</ref>छू लिया है उस सुकूँ को जो है जाने- इज़्तेराब१९।इज़्तेराब<ref>व्याकुलता की आत्मा</ref>।
सर से पा तक हुस्न है साज़े-नुमू२० नुमू<ref>उभरने, उत्पत्ति लेने वाला गीत</ref> राज़े - नुमू२१नुमू<ref>उत्पत्ति का मर्म</ref>
आ रहा है एक कमसिन पर दबे पाँवों शबाब।
अपने दिल की खिलवतों से हो रहा हूँ बारयाब।
</poem>