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ज़मीन सपनों की / माधव कौशिक

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<poem>
ज़मीन सपनों की, सारा जहान सपनों का
बना रहा हूं हवा में मकान सपनों का ।

तुम्हारी आंख के आंसू बता रहे हैं हमें
हुआ है क़त्ल बहुत बेज़ुंबां सपनों का ।

तुम अपने प्यार का सूरज भी सौंपते जाओ
बहुत खुला है मेरा आसमान सपनों का ।

हमारे जिस्म को भट्ठी में झोंकने वालों
नहीं है, कोई नहीं हुक्मरान सपनों का ।

तुम्हें भी वक़्त फिर सपनों में दफ़्न कर देगा
अगर वसूल करोगे लगान सपनों का ।</poem>
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