538 bytes added,
17:31, 23 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
}}
<poem>
क्यों किसी रहबर से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता।
मौजे-दरिया खु़द लगा लेती है साहिल का पता॥
राहबर रहज़न न बन जाये कहीं, इस सोच में।
चुप खड़ा हूँ भूलकर रस्ते में मंज़िल का पता॥
</poem>