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जोगी का मन नहीं ठिकाने / ललित मोहन त्रिवेदी
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15:41, 26 सितम्बर 2009
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हम सभी कोई न कोई लबादा ओढे हुए हैं और धीरे धीरे यही लबादा हमें सत्य लगने लगता है !
Shrddha
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