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'''आस्था -४'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<br /poem> पागल हूं हूँ तो पत्थर मारो<br />दीवाना हूँ हँस लो मुझपर<br />मुझ परमुझे तुम्हारी नादानी से<br />और आस्थाये आस्थाएँ गढनी हैं...<br /poem>
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