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Kavita Kosh से
आँख की कलियाँ, अरी, खोलो जरा,
हिल खपतियों को जगाने-सी लगी
पत्तियों की चुटकियाँ
झट दीं बजा,
विश्व-साँसें गीत
गाने-सी लगीं।
जग उठा तरु-वृन्द-जग, सुन घोषणा,
पंछियों में चहचहाहट मच गई;