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चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हुआ / माखनलाल चतुर्वेदी

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चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हुआ,
डालियों को यों चिताने-सी लगी
आँख की कलियाँ, अरी, खोलो जरा,
हिल खपतियों को जगाने-सी लगी

पत्तियों की चुटकियाँ
झट दीं बजा,
डालियाँ कुछ-
ढुलमुलाने-सी लगीं,
किस परम आनन्द-
निधि के चरण पर,
विश्व-साँसें गीत
गाने-सी लगीं।

जग उठा तरु-वृन्द-जग, सुन घोषणा,
पंछियों में चहचहाहट मच गई;
वायु का झोंका जहाँ आया वहाँ-
विश्व में क्यों सनसनाहट मच गई?