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|रचनाकार=कात्यायनी
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न जाने क्या सूझा
एक दिन स्त्री को
खेल-खेल में भागती हुई
भाषा में समा गई
छिपकर बैठ गई।
 
उस दिन
तानाशाहों को
नींद नहीं आई रात भर।
 
उस दिन
खेल न सके कविगण
अग्निपिण्ड के मानिंद
तपते शब्दों से।
 
भाषा चुप रही सारी रात।
 
रुद्रवीणा पर
कोई प्रचण्ड राग बजता रहा।
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