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स्त्री का सोचना एकान्त में / कात्यायनी
Kavita Kosh से
चैन की एक साँस
लेने के लिए स्त्री
अपने एकान्त को बुलाती है।
एकान्त को छूती है स्त्री
संवाद करती है उससे।
जीती है
पीती है उसको चुपचाप।
एक दिन
वह कुछ नहीं कहती अपने एकान्त से
कोई भी कोशिश नहीं करती
दुख बाँटने की
बस, सोचती है।
वह सोचती है
एकान्त में
नतीजे तक पहुँचने से पहले ही
ख़तरनाक घोषित कर दी जाती है !