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Kavita Kosh से
जिस तरह आग
::वन में लगी हुई है,--
एकता में सरस
::भास है--दुई है,--
सत्य में भ्रम हुआ है,--
::छुईमुई है,
मान बढ़ता रहा,
::उम्र ढलती रही।
समय की बाट पर,
::हाट जैसे लगी,--
मोल चलता रहा,
::झोल जैसे दगी,--
पलक दल रुक गये,
::आँख जैसे लगी,--
काल खुलता रहा
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