भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जिस तरह आग
::वन में लगी हुई है,--
एकता में सरस
::भास है--दुई है,--
सत्य में भ्रम हुआ है,--
::छुईमुई है,
मान बढ़ता रहा,
::उम्र ढलती रही।
समय की बाट पर,
::हाट जैसे लगी,--
मोल चलता रहा,
::झोल जैसे दगी,--
पलक दल रुक गये,
::आँख जैसे लगी,--
काल खुलता रहा
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits