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दीप जलता रहा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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दीप जलता रहा,
हवा चलती रही;
नीर पलता रहा,
बर्फ गलती रही।

जिस तरह आग
वन में लगी हुई है,--
एकता में सरस
भास है--दुई है,--
सत्य में भ्रम हुआ है,--
छुईमुई है,
मान बढ़ता रहा,
उम्र ढलती रही।

समय की बाट पर,
हाट जैसे लगी,--
मोल चलता रहा,
झोल जैसे दगी,--
पलक दल रुक गये,
आँख जैसे लगी,--
काल खुलता रहा