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07:29, 19 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:रुबाई]]
<poem>
आहट मेरे कदमों की जो सुन पाई है
इक बिजली सी तनबदन में लहराई है
दौड़ी है हरेक बात की सुध बिसरा के
रोटी जलती तवे पर छोड़ आई है
</poem>