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आहट मेरे कदमों की जो सुन पाई है / जाँ निसार अख़्तर

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आहट मेरे कदमों की जो सुन पाई है
इक बिजली सी तन-बदन में लहराई है

दौड़ी है हरेक बात की सुध बिसरा के
रोटी जलती तवे पर छोड़ आई है