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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर }} [[Category:रुबाई]] <poem> तू देश के महके ह…
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{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:रुबाई]]
<poem>
तू देश के महके हुए आँचल में पली
हर सोच है ख़ुश्बुओं के साँचे में ढली

हाथों को जोड़ने का ये दिलकश अंदाज़
डाली पे कंवल के जिस तरह बंद कली
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