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07:48, 19 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:रुबाई]]
<poem>
तू देश के महके हुए आँचल में पली
हर सोच है ख़ुश्बुओं के साँचे में ढली
हाथों को जोड़ने का ये दिलकश अंदाज़
डाली पे कंवल के जिस तरह बंद कली
</poem>