भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू देश के महके हुए आँचल में पली / जाँ निसार अख़्तर
Kavita Kosh से
तू देश के महके हुए आँचल में पली
हर सोच है ख़ुश्बुओं के साँचे में ढली
हाथों को जोड़ने का ये दिलकश अंदाज़
डाली पे कंवल के जिस तरह बंद कली