561 bytes added,
02:30, 28 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धर्मवीर भारती
}} <poem>फीकी फीकी शाम हवाओं में घुटती घुटती आवाजें
यूँ तो कोई बात नहीं पर फिर भी भारी भारी जी है,
माथे पर दु:ख का धुँधलापन, मन पर गहरी गहरी छाया
मुझको शायद मेरी आत्मा नें आवाज कहीं से दी है!</poem>