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|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>बात है: <br> चुकती रहेगी <br> एक दिन चुक जाएगी ही—बात। <br> जब चुक चले तब <br> उस विन्दु पर <br> <!--- विन्दु ही है इसे बिन्दु न करें, विन्दु का मतलब भी यही होता है ---> जो मैं बचूँ <br> (मैं बचूँगा ही!) <br> उस को मैं कहूँ— <br> इस मोह में अब और कब तक रहूँ? <br> <br>
चुक रहा हूँ मैं। <br> स्वयं जब चुक चलूँ <br> तब भी बच रहे जो बात— <br> (बात ही तो रहेगी!) <br> उसी को कहूँ: <br> यह सम्भावना— <br> यह नियति—कवि की <br> सहूँ। <br> उतना भर कहूँ,: <br> —इतना कर सकूँ <br> जब तक चुकूँ! <br/poem>
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