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एक दिन चुक जाएगी ही बात / अज्ञेय
Kavita Kosh से
बात है:
चुकती रहेगी
एक दिन चुक जाएगी ही — बात ।
जब चुक चले तब
उस विन्दु पर ! < विन्दु ही है इसे बिन्दु न करें, विन्दु का मतलब भी यही होता है --->
जो मैं बचूँ
(मैं बचूँगा ही !)
उस को मैं कहूँ —
इस मोह में अब और कब तक रहूँ ?
चुक रहा हूँ मैं ।
स्वयं जब चुक चलूँ
तब भी बच रहे जो बात —
(बात ही तो रहेगी !)
उसी को कहूँ :
यह सम्भावना —
यह नियति — कवि की
सहूँ ।
उतना भर कहूँ, :
— इतना कर सकूँ
जब तक चुकूँ!