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|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
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एक माथा दूसरे से
 
दूसरा तीसरे से
 
तीसरा चौथे से...सातवें से...दसवें से
 
भिड़ा-टकराया,
 
हर माथा अलग-अलग बोला
 
अलग-अलग मुँह फेर ताका
 
एक-दूसरे को डाँटा
 
दिशा-ज्ञान बाँटा
 
ज़रा भी चली हवा कि माथा
 
माथे से टकराया
 
लड़ा-झगड़ा
 
एक ही धड़ पर आँखें मटकाता ।
 
लेकिन अन्दर-अन्दर रावण के ये
 
दस-दस माथे
 
रहे सोचते एक ही बात
 
एक ढंग से एक ही बात
 
रावण के ये दस-दस माथे ।
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