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कुछ समझा आपने / प्रताप सहगल

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'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: =प्रताप सहगल'''}}{{KKCatKavita‎}}<poem>
कुछ देखा आपने
 हाल में अँधेरा अन्धेरा हुआ  
और मंच आलोकित हो उठा
 
कुछ सुना आपने
 हाल में खामोशी ख़ामोशी हुई  
सूत्रधार अपना वक्तव्य देने लगा
 और खामोशी ख़ामोशी सन्नाटे में बदल गयी गई
कुछ सोचा आपने
 
कि वक्तव्य देने के लिए
 अँधेरा अन्धेरा और खामोशी ख़ामोशी कितनी ज़रूरी है .हैं।
ग़फलत में न रहें
 
सावधान होकर सोचें
 आपको अंधरे अन्धेरे में डालना  और खामोशी ख़ामोशी से बांधना  
कितना वाजिब है
 कितना मुनासिब.मुनासिब।
वक्तव्य दिया सूत्रधार ने
 
संगीत की लय
 और पांवों पाँवों की ताल के साथ  
वक्तव्य दिया सूत्रधार ने
 
गौर किया आपने
 
पूरा नाटक ख़त्म हो गया
 
पर सूत्रधार का वक्तव्य नहीं
 
 
देखा आपने
प्रकाश ने फिर फैलकर आपको
 अपनी बांहों बाँहों में भर लिया  
आपने भी भर लिया
 
प्रकाश को
 
अपनी आत्मा में
 चल दिए दर्शक -दीर्घा से बाहर 
वक्तव्य को हनुमान चालीसा
 
बनाकर
 
ध्यान दिया आपने
 
कि आपके हाथ
 
वहीं कहीं तो नहीं रह गए
 
चिपके हुए कुर्सी के हत्थों के साथ
 
या पाँव
 धंसे धँसे हुए फर्श में  
या आँखें
 
या सिर
 
वहीं कहीं हवा में घुले
 सूत्रधार के वक्तव्य के साथ .साथ।
कुछ समझा आपने ?
</poem>
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