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|रचनाकार=शशि पाधा
}}
{{KKCatKavita}}<poem>विदा की वेला में सूरज ने
धरती की फिर माँग सजाई
तारक वेणी बाँध अलक में
नयनों में भर ले जाऊँगा
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।</poem>