भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखिये-तो / इसाक अश्क

41 bytes removed, 14:42, 9 नवम्बर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=इसाक अश्क
}} {{KKCatKavita}}{{KKCatNavgeet}}<poem>देखिये-तो<br>किस कदर फिर<br>आम-अमियों बौर आए।<br><br>
धूप <br>पीली चिट्ठियाँ<br>घर आँगनों में,<br>डाल<br>हँसती-गुनगुनाती है-<br>वनों में,<br>पास कलियों<br>फूल-गंधों के<br>सिमट सब छोर आए।<br><br>
बंदिशें<br>टूटीं प्रणय के-<br>रंग बदले,<br>उम्र चढती<br>जन्दगी के-<br>ढंग बदले,<br>ठेठ घर में<br>घुस हृदय के<br>
रूप-रस के चोर आए।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits