1,507 bytes added,
15:07, 10 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
|संग्रह=आस / बशीर बद्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
किस देश में ये क़ाफलए वक़्त रुका है
आरिज़ के उजाले हैं न ज़ुल्फों की घटा है
कुछ मेरी निगाहों के तले धुंध बहोत है
कुछ जश्ने-चरागाँ से अन्धेरा भी बढ़ा है
मैं ने तिरी बातों को कभी झूठ कहा था
उस जुर्म पे हर झूठ को सच मान लिया है
ऐ शोख़ गिज़ालो, यहाँ दो फूल तो रख दो
इस क़ब्र में ख़्वाबीदा मोहब्बत का ख़ुदा है
आरिज़ से झलकती है गुलाबों की गुलाबी
मेरी निगाहे-शौक़ ने वो रंग दिया है
अब आओ कलेजे से लिपट कर मिरे सो जाओ
बाहर कहाँ जाओगे बड़ी सर्द हवा है
कुछ देर में साँसों की भी आहट न मिलेगी
दिल रात के सन्नाटे में यूँ डूब रहा है
(१९६०)
</poem>