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किस देश में ये क़ाफलए वक़्त रुका है / बशीर बद्र
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किस देश में ये क़ाफलए वक़्त रुका है
आरिज़ के उजाले हैं न ज़ुल्फों की घटा है
कुछ मेरी निगाहों के तले धुंध बहोत है
कुछ जश्ने-चरागाँ से अन्धेरा भी बढ़ा है
मैं ने तिरी बातों को कभी झूठ कहा था
उस जुर्म पे हर झूठ को सच मान लिया है
ऐ शोख़ गिज़ालो, यहाँ दो फूल तो रख दो
इस क़ब्र में ख़्वाबीदा मोहब्बत का ख़ुदा है
आरिज़ से झलकती है गुलाबों की गुलाबी
मेरी निगाहे-शौक़ ने वो रंग दिया है
अब आओ कलेजे से लिपट कर मिरे सो जाओ
बाहर कहाँ जाओगे बड़ी सर्द हवा है
कुछ देर में साँसों की भी आहट न मिलेगी
दिल रात के सन्नाटे में यूँ डूब रहा है
(१९६०)