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ढाया मैं तिरे काबे को, तैं मेरा दिल ऐ शैख़सावन के बादलों की तरह से भरे हुएतामीर मैं करूँ उसे, तैं इसको बनावैवे नैन हैं कि जिससे ये जंगल हरे हुएऐ ख़िज़्र, ज़इंसाफ़ अपना सौंपिए किसको बजुज़-ख़ुद-रफ़्तगी, क्या तुर्फ़ा सफ़र हैख़ुदाजिसमें कि मुंसिफ़ जो बोलते हैं सो तुझसे डरे हुए’सौदा’ निकल भूलें, न कोई राह बतावैघर से कि अब तुझको ढूँढतेलड़के फिरें हैं पत्थरों से दामन भरे हुए
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