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02:52, 14 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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अरी हरि या मग निकसे आइ अचानक, हों तो झरोखे ठाढ़ी।
देखत रूप ठगौरी सी लागी, बिरह-बेलि उर बाढ़ी॥
गुरुजन के भय संग गई नहिं, रह गई मनौ चित्र लिखि काढ़ी।
’हरीचंद’ बलि ऐसी लाज में लगौ री आग, हौं बिरह दुख दाढ़ी॥
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