अरी हरि या मग निकसे आइ अचानक, हों तो झरोखे ठाढ़ी।
देखत रूप ठगौरी सी लागी, बिरह-बेलि उर बाढ़ी॥
गुरुजन के भय संग गई नहिं, रह गई मनौ चित्र लिखि काढ़ी।
’हरीचंद’ बलि ऐसी लाज में लगौ री आग, हौं बिरह दुख दाढ़ी॥
अरी हरि या मग निकसे आइ अचानक, हों तो झरोखे ठाढ़ी।
देखत रूप ठगौरी सी लागी, बिरह-बेलि उर बाढ़ी॥
गुरुजन के भय संग गई नहिं, रह गई मनौ चित्र लिखि काढ़ी।
’हरीचंद’ बलि ऐसी लाज में लगौ री आग, हौं बिरह दुख दाढ़ी॥