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15:50, 14 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सौदा
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जब बज़्म में बुताँ की वो रश्के-मह गया था
आपस में हर परी-रू मुँह देख रह गया था
क्या-क्या दिला के ग़ैरत रक्खा में बाज़ दिल को
वरना नसहनी बातें तेरी मैं सह गया था
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