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{{KKRachna
|रचनाकार=सौदा
}}
<poem>
न क़स्दे-काबा है दिल में, न अज़्मे-दैर बंदा हूँ
गले में डालकर रस्सी, जिधर चाहे उधर ले जा
निहाल-आसा नहीं हैं ख़ुर्रमी माटी में ग़ुरबत के
वतन से मुश्ते-ख़ाक ऐ दिल, क़दम पर बाँधकर ले जा
</poem>