भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न क़स्दे-काबा है दिल में, न अज़्मे-दैर बंदा हूँ / सौदा
Kavita Kosh से
न क़स्दे-काबा है दिल में, न अज़्मे-दैर बंदा हूँ
गले में डालकर रस्सी, जिधर चाहे उधर ले जा
निहाल-आसा नहीं हैं ख़ुर्रमी माटी में ग़ुरबत के
वतन से मुश्ते-ख़ाक ऐ दिल, क़दम पर बाँधकर ले जा