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16:32, 14 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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रसने, रटु सुंदर हरि नाम।
मंगल-करन हरन सब असगुन करन कल्पतरु काम।
तू तौ मधुर सलौनो चाहत प्राकृत स्वाद मुदाम।
’हरीचंद’ नहिं पान करत क्यों कृष्ण-अमृत अभिराम॥
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