{{KKCatGhazal}}
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खुली आँखों में सपना झाँकता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है
मिरा तन मोर बन के नाचता है
मुझे हर कैफ़ियत <ref>व्याख्या</ref> में क्यों न समझेवो मेरे सब हवाले <ref>संदर्भ</ref> जानता है
मैं उसकी दस्तरस<ref>हाथ की पहुँच</ref> में हूँ मगर वो
बहाने से मुझे भी टालता है
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