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{{KKRachna
|रचनाकार=पद्माकर
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<poem>

चपला चमाकैं चहु ओरन ते चाह भरी
चरजि गई ती फेरि चरजन लागी री ।
कहैं पद्माकर लवंगन की लोनी लता
लरजि गयी ती फेरि लरजन लागी री ।
कैसे धरौ धीर वीर त्रिबिध समीरैं तन
तरजि गयी ती फेरि तरजन लागी री ।
घुमड़ि घमंड घटा घन की घनेरी अबै
गरजि गई ती फेरि गरजन लागी री ।
</poem>
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