भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चपला चमाकैं चहुँ ओरन ते चाह भरी / पद्माकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चपला चमाकैं चहु ओरन ते चाह भरी
चरजि गई ती फेरि चरजन लागी री ।
कहैं पद्माकर लवंगन की लोनी लता
लरजि गयी ती फेरि लरजन लागी री ।
कैसे धरौ धीर वीर त्रिबिध समीरैं तन
तरजि गयी ती फेरि तरजन लागी री ।
घुमड़ि घमंड घटा घन की घनेरी अबै
गरजि गई ती फेरि गरजन लागी री ।