{{KKGlobal}}
{{KKAnooditRachna
|रचनाकार=अलेक्सान्दर ब्लोक पूश्किन|संग्रह=यह आवाज़ कभी सुनी क्या तुमने धीरे-धीरे लुप्त हो गया दिवस-उजाला / अलेक्सान्दर पूश्किन
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[[Category:रूसी भाषा]]
वे मुस्काएँ, और चेतना सुनती यह मेरी
मेरे मीत, मीत प्यारे तुम... प्यार करूँ... मैं हूँ तेरी ...हूँ तेरी!
'''रचनाकाल : 1823'''
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