भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात / अलेक्सान्दर पूश्किन

37 bytes added, 07:08, 25 दिसम्बर 2009
वे मुस्काएँ, और चेतना सुनती यह मेरी
मेरे मीत, मीत प्यारे तुम... प्यार करूँ... मैं हूँ तेरी ...हूँ तेरी!
 
 
'''रचनाकाल : 1823'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,720
edits