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मेरी प्यारी, वह क्षण आया / अलेक्सान्दर पूश्किन
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07:43, 25 दिसम्बर 2009
<Poem>
मेरी प्यारी वह क्षण आया, चैन चाहता मेरा मन,
बित
बीत
रहे घण्टों पर घण्टे, सतत उड़े जाते हैं दिन,
और इन्हीं के साथ हमारा, ख़त्म हो रहा है जीवन,
हम दोनों जीने को उत्सुक, किन्तु आ रहा निकट निधन,
अनिल जनविजय
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