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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह=जीने के लिए / महेन्द्र भटनागर
}}{{KKCatKavita}}<poem>ज़िन्दगी ललक थी; किन्तु भारी जुआ बन गयी, <br>ज़िन्दगी फ़लक थी; किन्तु अंधा कुआँ बन गयी, <br>कल्पनाओं रची, भावनाओं भरी, रूप - श्री<br>ज़िन्दगी ग़ज़ल थी; बिफर कर बददुआ बन गयी !</poem>
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