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{{KKRachna
|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
अपनी पलकें वो बंद रखता है
जाने कैसी पसंद रखता है

ख़ुद को कहता है आसमाँ पैमा
कितनी ओछी कमंद रखता है

मारा जाएगा देखना इक दिन
क्यूँ दिल ए दर्दमंद रखता है

साथ वाले ख़फा ख़ता ये है
क्यूँ इरादे बुलंद रखता है

धूप से सामना न हो जाए
घर से दरवाज़े बंद रखता है
</poem>
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