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|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
रेट पर जितने भी नविश्ते हैं
अपने माहौल के मुजल्ले हैं

कौन जाने कहाँ दफीने हैं
अपने पास तो सिर्फ़ नक्शे हैं

सूरतें छीन ले गया कोई
इस दफा आईने अकेले हैं

ख़्वाब ख़ुशबू ख़्याल और ख़दशे
एक दीवार सौ दरीचे हैं

दोस्ती इश्क़ और वफ़ादारी
सख्तजाँ में भी नर्म गोशे हैं

पढ़ सको तो कभी पढ़ो उन को
शाख़-दर-शाख़ भी सफ़ीहे हैं

जुगनुओं के परों से लिक्खे हुए
जंगलों में कई जरीदे हैं
</poem>
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