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बहर-ए-हस्ती को बेकरानी दे / शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
बहरे हस्ती को बेकरानी दे
नक़्शे अव्वल हूँ नक़्शे सानी दे
दे हमें रात रतजगों वाली
ज़िन्दगी दे तो ज़िन्दगानी दे
चाक भी कर ज़मीर की जुल्मत
फिर हमें नूरे कह्कशानी दे
मुन्हरिफ़ हो रहे हैं सब तुझ से
अपने की फिर निशानी दे
अब पयम्बर कहाँ है पास तिरे
अब की पैगाम तू ज़ुबानी दे
अपने बच्चों को क्या सुनाऊँगा
कोई क़िस्सा कोई कहानी दे
</poem>
Shrddha
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