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<span class="upnishad_mantra">
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना॥१०- २२॥
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इन्द्रिन में मन, देवन में देव,
और सामवेद हूँ वेदन में.
सब प्रानिन में चेतनता हूँ ,
बल ज्ञानन कौ मैं हूँ मन में
<span class="upnishad_mantra">रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्॥१०- २३॥</span>
एकादश रुद्रन में शंकर ,
मैं यक्ष कुबेर हूँ असुरन में,
मैं आठ वसुन माहीं अग्नि,
गिरिराज सुमेरु, सुमेरन में
<span class="upnishad_mantra">पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्।सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः॥१०- २४॥</span>
में मुख्य पुरोहित देवन कौ,
हे पार्थ! बृहस्पति जानि मोहे.
सागर हूँ सरि- सरितन माहीं.
स्कन्द सेनापति मानि मोहे
<span class="upnishad_mantra">महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः॥१०- २५॥</span>
भृगु ऋषि महर्षिन माहीं मैं,
ओंकार हूँ सगरे आखर में.
सब यज्ञन में जप यज्ञ तथा ,
मैं अचल, अचल सब गिरिवर में
<span class="upnishad_mantra">अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः॥१०- २६॥</span>
वृक्षन माहीं पीपल विराट,
ऋषि नारद हूँ ऋषियन माहीं.
रथ चित्र हूँ मैं गान्धर्वंन में,
मैं कपिल मुनि मुनियन माहीं
<span class="upnishad_mantra">उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्।ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्॥१०- २७॥</span>
अश्वन में उच्चश्रवा, गज में,
मैं ही तो एरावत गज हूँ.
मनुजन में राजा एकराट,
मैं दिग्-दिगंत कौ दिग्गज हूँ
<span class="upnishad_mantra">आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्।प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः॥१०- २८॥</span>
सब गौंअन में हूँ कामधेनु,
और कामदेव हूँ प्रजनन में.
सब सर्पन माहीं सर्प वासुकि,
बल वज्र हूँ सगरे शास्त्रन में
<span class="upnishad_mantra">अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥१०- २९॥</span>
में शेषनाग सब नागन में ,
और वरुण देव जलधर माहीं.
पितरों में अयर्मा पितरेश्वर ,
यमराज हूँ , राजेश्वर माहीं
<span class="upnishad_mantra">प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्॥१०- ३०॥</span>
प्रहलाद हूँ सब दैत्यन माहीं ,
और काल माहीं क्षण,पल मैं हूँ.
मृगराज हूँ सब पशुयन माहीं .
और पक्षिन माहीं गरुण मैं हूँ
<span class="upnishad_mantra">पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी॥१०- ३१॥</span>
पावन कर्ता में पवन , शस्त्र
धारण कर्ता में राम हूँ मैं,
मत्स्यन माहीं मैं मगरमच्छ ,
नदियन में गंगा धाम हूँ मैं
<span class="upnishad_mantra">सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन।अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्॥१०- ३२॥</span>
अति आदि अंत और मध्य सृष्टि ,
कौ आत्म ज्ञान सब ज्ञानिन में.,
बहु वाद विवादन में निर्णय ,
सत युक्ति हूँ सत्य प्रमाणन में
<span class="upnishad_mantra">अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च।अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः॥१०- ३३॥</span>
सब आखर माहीं मैं अकार,
और द्वंद समास समासन में,
सुन महाकाल कौ मुख विराट
धारक पोषक सब कालन में
<span class="upnishad_mantra">मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा॥१०- ३४॥</span>
यश, कीर्ति, क्षमा, श्री, वाक्, धृति,,
स्मृति, मेघा, हूँ नारिन में .
उत्पत्ति विनाशन कौ कारण ,
अथ कर्म माहीं मैं कारन में
<span class="upnishad_mantra">बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः॥१०- ३५॥</span>
शुचि गेय श्रुतिन में साम बृहत,
गायत्री छंद हूँ छंदन में,
शुभ माघ कौ मास महीनन में.
ऋतु में बसंत हूँ ऋतुयन में
<span class="upnishad_mantra">द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम्॥१०- ३६॥</span>
छल छद्म माहीं मैं द्युत करम ,
अति तेजस्वी तेजस्विन में,
जय निश्चय मैं विजिताओं में ,
सात्विक मन सात्विक पुरुषन में
<span class="upnishad_mantra">वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः।मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः॥१०- ३७॥</span>
कुल यादव में कृष्ण, पाण्डु जन,
माहीं धनंजय अर्जुन हूँ.
कवियों में हूँ कवि शुक्राचार्य ,
मुनियों में वेदव्यास मुनि हूँ
<span class="upnishad_mantra">दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्॥१०- ३८॥</span>
बल दंड दमन की शक्ति में,
और चाह विजय नीतिज्ञन में,
अति मौन, गोप के भावन में,
और तत्व कौ ज्ञान हूँ ज्ञानिन में
<span class="upnishad_mantra">यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्॥१०- ३९॥</span>
सब प्रानिन के कौन्तेय सुनौ,
सिरजन कौ कारन भी मैं हूँ.
चार-अचर सबहिं कौ मूल हूँ मैं,
यहि सृष्टि कौ कारन मैं हूँ
<span class="upnishad_mantra">नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप।एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया॥१०- ४०॥</span>
प्रिय मोरे परन्तप मोरी सुनौ,
मोरी दिव्य विभूति कौ अंत कहाँ ?
विस्तार विभूतिन कौ आपुनि,
संक्षेपन तोसों है नैकु कहा
<span class="upnishad_mantra">यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्॥१०- ४१॥</span>
जेहि-जेहि भी वस्तु विभूतिन मय
बल कान्ति सों युक्त है , मोरी हैं,
मोरे तेज के अंशन जायो सों.
ब्रह्माण्ड की सत्ता मोरी है
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अथ बहुतहि जाननि सों अर्जुन !
किम, कैसो प्रयोजन होवत है,