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14:52, 11 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
|संग्रह=डॉ० कुंवर बैचेन के नवगीत / कुँअर बेचैन
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<poem>
दुनिया के “ऑफिस” में अब तो
बैठे हैं यह प्राण
लिपिक से ।
परित्यक्ता सी
कई फाइलें
अलग-अलग मेजों पर चुप हैं
उनके घूंघट
जैसे अंधे कोटपीस की-
छिपी तुरूप हैं
कई रिश्वतें
“गर्ल फ्रेंड्स-सी
झाँक रहीं बाहर की
“चिक” से ।
कॉफी के
प्यालों पर क्रमश:
बिखरे हुए प्यारे के किस्से
कुछ मँहगाई के पत्थर से
चटखे हुए
हृदय के हिस्से
सोच रहे
अब हम आफिस से
भागें कहाँ,
कौन सी
“ट्रिक से।
</poem>
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