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{{KKRachna
|रचनाकार=रामक‍ृष्‍ण पांडेय
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पांव-पैदल और कितनी दूर
थक गयी है देह थक कर चूर

थक गए हैं
चांद-तारे और बादल
पेड़-पौधे,वन-पत्तियां,
नदी, सागर
थक गयी धरती
समय भी थक गया भरपूर

नहीं कोई गांव,
कोई ठांव,कोई छांव
थक गयी है
जिंदगी बेदांव
और उस पर
धूप,गर्मी,शीत,वर्षा क्रूर

पांव-पैदल और कितनी दूर ...
</poem>