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00:19, 12 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामकृष्ण पांडेय
|संग्रह=
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<poem>
पांव-पैदल और कितनी दूर
थक गयी है देह थक कर चूर
थक गए हैं
चांद-तारे और बादल
पेड़-पौधे,वन-पत्तियां,
नदी, सागर
थक गयी धरती
समय भी थक गया भरपूर
नहीं कोई गांव,
कोई ठांव,कोई छांव
थक गयी है
जिंदगी बेदांव
और उस पर
धूप,गर्मी,शीत,वर्षा क्रूर
पांव-पैदल और कितनी दूर ...
</poem>