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{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
|संग्रह=जाँ निसार अख़्तर-एक जवान मौत / जाँ निसार अख़्तर
}}
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<poem>
ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर
एक नदी में कितने भंवर

लाख तरह से नाम तेरा
बैठा लिक्खूँ कागज़ पर

रात के पीछे रात चले
ख़्वाब हुआ हर ख़्वाब-ए-सहर

कितना मुश्किल कितना कठिन
जीने से जीने का हुनर
</poem>
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