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ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर / जाँ निसार अख़्तर

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ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर
एक नदी में कितने भंवर

लाख तरह से नाम तेरा
बैठा लिक्खूँ कागज़ पर

रात के पीछे रात चले
ख़्वाब हुआ हर ख़्वाब-ए-सहर

कितना मुश्किल कितना कठिन
जीने से जीने का हुनर