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कौवे उड़ा रही है माँ / मीठेश निर्मोही
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09:33, 19 जनवरी 2010
कि अबके बरस देवझूलनी ग्यारस के दिन तो
निश्चय ही पहुँचूंगा मैं
नाड़ी
(छोटा तालाब)
में नहाने
ककड़ी-मतीरे खाने।
</poem>
अनिल जनविजय
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