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{{KKRachna
|रचनाकार= श्रद्धा जैन
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<poem>
क्यूँ चुप-चुप सा खड़ा है दर्द
आँखों में जब हरा है दर्द

हँसते-खिलते लोगों से मिल
कुछ तो शायद डरा है शायद

पलकों की छत पर है रोका
मुंडेरों पे मरा है दर्द

यादों की इक आग जला कर
कहा है हमने खरा है दर्द

तुमने वफ़ा के सफ़र में 'श्रद्धा'
सुना लिखा और पढ़ा है दर्द
</poem>
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